Sunday, September 18, 2016
मोक्ष -कविता
नचिकेत और यम का संवाद
Kathy Upanishad was written by achary Kath. It is legendary story of a little boy, Nachiketa who meets Yama (the Indian deity of death). Their conversation evolves to a discussion of the nature of mankind, knowledge, Soul, Self and liberation.
आचार्य कठ ने उपनिषद रचना की। जो कठोपनिषद कहलाया। इस में नचिकेत और यम के बीच संवाद का वर्णन है । यह मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान की चर्चा है।
विश्वजीत यज्ञ किया वाजश्रवा ने ,
सर्वस्व दान के संकल्प के साथ।
पर कृप्णता से दान देने लगे वृद्ध गौ।
पुत्र नचिकेत ने पिता को स्मरण कराया,
प्रिय वस्तु दान का नियम।
क्रोधित पिता ने पुत्र नचिकेत से कहा-
“जा, तुझे करता हूँ, यम को दान।”
नचिकेत स्वंय गया यम के द्वार ।
तीन दिवस भूखे-प्यासे नचिकेत के
प्रतिबद्धता से प्रसन्न यम ने दिया उसे तीन वर ।
पहला वर मांगा -पिता स्नेह, दूसरा -अग्नि विद्या,
तीसरा – मृत्यु रहस्य और आत्मा का महाज्ञान।
और जाना आत्मा -परमात्मा , मोक्ष का गुढ़ रहस्य.
यज्ञ किया पिता ने अौर महाज्ञानी बन गया पुत्र ।
जिंदगी के रंग - कविता 8
जिंदगी ने ना जाने कितने रंग बदले।
रेगिस्तान के रेत की तरह
कितने निशां बने अौर मिटे
हर बदलते रंग को देख ,
दिल में तकलिफ हुई।
काश, जिंदगी इतनी करवटें ना ले।
पर , फिर समझ आया ।
यही तो है जिंदगी।
मैं एक लड़की ( कविता 1 )
इस दुनिया मॆं मैने
आँखें खोली.
यह दुनिया तो
बड़ी हसीन
और रंगीन है.
मेरे लबों पर
मुस्कान छा गई.
तभी मेरी माँ ने मुझे
पहली बार देखा.
वितृष्णा से मुँह मोड़ लिया
और बोली -लड़की ?
तभी एक और आवाज़ आई
लड़की ? वो भी सांवली ?
जहाँ खारा पानी बिकता है
#mumbaislum ( कविता )
वह भी रहती हैं वहाँ
जहां खारा पानी बिकता है।
दरिद्र, पति परित्यक्ता,
दस बच्चों के साथ,
दशकों पुरानी अपनी
बावड़ी का जल बाँट कर
कहती है –“ पानी बेच कर क्या जीना?
क्या पूजा सिर्फ मंदिरों और मस्जिदों में ही होती है ?
यह इबादत का उच्चतम सोपान नहीं है क्या?
(मुंबई, मानखुर्द बस्ती में जहाँ गर्मी में लोग पानी खरीद रहे हैं। वहाँ ज़रीना अपनी पुरानी बाबड़ी का द्वार सभी के लिए खोल रखा है। ) news from daily – HINDU, pg – 2 dated may 12 2016.
विश्वकर्मा पूजा Vishwakarma Day
Vishwakarma Jayanti / Puja is a day of celebration for Hindu god, Vishwakarma .He is considered divine architect, Creator of fabulous weapons for the Gods and is credited with Sthapatya Veda, the science of mechanics and architecture.
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों आदि पूजा करने का विधान है।
इंद्रधनुष -कविता Rainbow -poem
There is nothing in this world that is not a gift from you ~ Rumi.
ज़िंदगी के सात रंगों को भूल,
हम जीवन को ढूँढ रहे हैं
काले-सफ़ेद रंगों के धुआँ अौर धुंध में।
भाग रहें हैं, अनजानी राहों पर ,
दुनिया के मायावी मृगतृष्णा के पीछे।
आंगन की खिली धूप, खिलते फूल,
बच्चों की किलकारी,
ऊपरवाले की हर रचना है न्यारी।
अगर कुछ ना कर सको ,
तो थमा दो ऊपर वाले को अपनी ङोर।
खुबसूरत सतरंगी इंद्रधनुषी लगेगी,
ज़िंदगी हर अोर।
Tuesday, September 13, 2016
मनोविज्ञान#2 आत्म प्रेरणा से अपना व्यक्तित्व निखारे. Self-improvement by autosuggestion
मनोविज्ञान#2 आत्म प्रेरणा से अपना व्यक्तित्व निखारे. Self-improvement by autosuggestion
Auto suggestion – A process by which an individual may train subconscious mind for self- improvement.
यह एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है. आत्म प्रेरित सुझाव विचारों, भावनाओं और व्यवहारोँ को प्रभावित करता हैँ. किसी बात को बारबार दोहरा कर अपने व्यवहार को सुधारा जा सकता है.
अपनी कमियाँ और परेशानियाँ हम सभी को दुखी करती हैँ. हम सभी इस में बदलाव या सुधार चाह्ते हैँ और जीवन मेँ सफलता चाहतेँ हैँ. किसी आदत को बदलना हो, बीमारी को नियंत्रित करने में अक्षम महसुस करतेँ होँ, परीक्षा या साक्षात्कार में सफलता चाह्तेँ हैँ. पर आत्मविश्वास की कमी हो.
ऐसे मेँ अगर पुर्ण विश्वास से मन की चाह्त निरंतर मन हीँ मन दोहराया जाये. या अपने आप से बार-बार कहा जाये. तब आप स्व- प्रेरित संकल्प शक्ति से अपनी कामना काफी हद तक पुर्ण कर सकतेँ हैँ और अपना व्यवहार सुधार सकते हैँ। जैसे बार-बार अपनी बुरी आदत बदलने, साकारात्मक विचार, साक्षात्कार मेँ सफल होने, की बात दोहराया जाये तब सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है.
ऐसा कैसे होता है?
हमारा अवचेतन मन बहुत शक्तिशाली है. बार बार बातोँ को दोहरा कर अचेतन मन की सहायता से व्यवहार मेँ परिवर्तन सम्भव है. साकारात्मक सोच दिमाग और शरीर दोनों को प्रोत्साहित करतेँ हैँ. इच्छाशक्ति, कल्पना शक्ति तथा सकारात्मक विचार सम्मिलित रुप से काम करते हैँ. पर यह ध्यान रखना जरुरी है कि हम अवस्तविक कामना ना रखेँ और इन्हेँ लम्बे समय तक प्रयास जारी रखेँ.
हमारा अवचेतन मन बहुत शक्तिशाली है. बार बार बातोँ को दोहरा कर अचेतन मन की सहायता से व्यवहार मेँ परिवर्तन सम्भव है. साकारात्मक सोच दिमाग और शरीर दोनों को प्रोत्साहित करतेँ हैँ. इच्छाशक्ति, कल्पना शक्ति तथा सकारात्मक विचार सम्मिलित रुप से काम करते हैँ. पर यह ध्यान रखना जरुरी है कि हम अवस्तविक कामना ना रखेँ और इन्हेँ लम्बे समय तक प्रयास जारी रखेँ.
मनोविज्ञान#3 मन मेँ गिल्ट/ अपराध बोध ना पालेँ (व्यक्तित्व पर प्रभाव) Guilt (emotion)
( Alice Miller claims that “many people suffer all their lives from this oppressive feeling of guilt.”
Feelings of guilt can prompt subsequent virtuous behaviour. Guilt’s are one of the most powerful forces in undermining one’s self image and self-esteem. Try to resolve it.)
गिल्ट या अपराध बोध एक तरह की भावना है. यह हमारे नैतिकता का उल्लंघन, गलत आचरण जैसी बातोँ से उत्पन्न होता है. इसके ये कारण हो सकतेँ हैँ –
बच्चोँ/ बचपन मेँ अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा ना उतरने की भावना.
अपने को दोषी/ अपराधी महसूस करना.
किसी को चाह कर भी मदद/ पर्याप्त मदद न कर पाने का अह्सास.
अपने आप को किसी और की तुलना में कम पाना.
हम सब के जीवन मेँ कभी ना कभी ऐसा होता हैँ. हम ऐसा व्यवहार कर जाते हैँ, जिससे पश्चाताप और आंतरिक मानसिक संघर्ष की भावना पैदा होती है. यह हमारे अंदर तनाव उत्पन्न करता है. जब यह अपराध-बोध ज्यादा होने लगता है, तब यह किसी ना किसी रुप मेँ हमारे व्यवहार को प्रभावित करता है.
अपने व्यवहार को समझे और सुधारेँ –
अपने गिल्ट को समझने की कोशिश करेँ.
अपनी गलतियोँ को स्वीकार कर सुधार लायेँ. अस्विकार ना करेँ.
तर्कसंगत तरीके से ध्यान देँ गिल्ट अनुचित तो नहीँ है
तर्कसंगत गिल्ट व्यवहार सुधारने मेँ मदद करता है.
माफी माँगना सीखे.
भूलवश गलती हो, जरुर माफी मांगे.
अपनी गलतियोँ को अनदेखी ना करेँ.
बच्चोँ / लोगोँ से अत्यधिक अपेक्षा ना रखेँ. वे जैसे हैँ वैसे हीँ उन्हेँ स्वीकार करेँ.
पूर्णता किसी में मौजूद नहीं है।
अपने आप को जैसे आप हैँ वैसे हीँ पसंद करेँ. तुलना के बदले आत्म स्वीकृति की भावना मह्त्वपुर्ण है.
बच्चोँ को हमेशा टोक कर शर्मिंदा ना करेँ.
जरुरत हो तब बेझिझक कौंसिलर से मदद लेँ.
गिल्ट आत्म छवि, आत्मविश्वास, और आत्म सम्मान कम करता हैं । गहरा गिल्ट चिंता, अवसाद , बेचैनी या विभिन्न मनोदैहिक समस्याओं के रूप में दिखाता है. इसलिये गिल्ट की भावनाओं को दूर करना चाहिये.
आम के आम, गुठलियोँ के दाम – 1 पुदिना प्रोग्राम – चटनी, स्टोक , बागवानी. (3 in 1- uses of Mint : Dip, Stock and Gardening )
पुदीने की एक गड्डी आपके तीन काम आ सकती है. सबसे पहले पुदीने की गड्डी को तीन हिस्से मेँ अलग-अलग
कर लेँ –
- पत्ते,
- पतली टहनियाँ, पुराने और पीले पत्ते ( जिन्हे आप फेँकने वाले हैँ )
- मोटी डंडियाँ
#चटनी –
पुदीने की गड्डी – 100 ग्राम
इमली – 25 ग्राम
हरी मिर्च – 4-5
गुड – 10-20 ग्राम
सरसोँ तेल – 1 चम्मच
नमक – स्वाद अनुसार
पुदीने की गड्डी से पत्ते अलग करे. धो कर हरी मिर्च, ईमली, गुड, सरसोँ तेल, नमक डाल कर मिक्सी मेँ बरीक पीस लेँ. चटनी तैयार है. पकौडियोँ या किसी मन पसन्द भोजन के साथ खा सकते हैं. फ्रिज मेँ 3-4 दिन रख कर काम मेँ ला सकतेँ हैँ.
#सूप स्टोक, गोलगप्पे का पानी या शोरबा
पुदीने की गड्डी की पतली टहनियाँ, पुराने और पीले पत्ते ( जिन्हे आप फेँकने वाले हैँ ) धो लेँ. कुकर मेँ एक कप पानी मेँ 5 मिनट उबाल लेँ. इस पानी को आप सूप स्टोक, गोलगप्पे का पानी या शोरबा/ सब्जी मेँ डालने के काम मेँ ला सकतेँ हैँ. हम सभी जानतेँ हैँ, पुदीने का पानी पेट के लिये लाभदायक होता है.
# बागवानी –
पुदीने के पौधे लगाना बडा सरल होता है. पुदीने की गड्डी मेँ से पत्ते निकाल कर मोटी डंडियाँ अलग कर लेँ. अगर ध्यान देँगे, तब किसी-किसी डंडी मेँ पतली- पतली जडेँ भी नज़र आयेँगी. इन्हेँ अपने बगीचे या किसी गमले मेँ लगा देँ. समय-समय पर पानी देते रहेँ. जल्दी हीँ इन मेँ नये पत्ते आने लगेगेँ.
मनोविज्ञन#3- धर्म मेँ मनोविज्ञन का छिपा रहस्य Psychology and religion / spirituality
Psychology in religion – Religion is a learned behaviour, which has a strong and positive impact on human personality, if followed properly.
धर्म बचपन से सीखा हुआ व्यवहार है. अपने अराध्य या ईश्वर के सामने अपनी मनोकामनायेँ कहना या अपनी भूल कबुलना, ये हमारे सभी बातेँ व्यवहार को साकारात्मक रुप से प्रभावित करती हैँ. जो मनोविज्ञान का भी उद्देश्य है.
प्रार्थना, उपदेश, आध्यात्मिक वार्ता, ध्यान, भक्ति गीत, भजन आदि सभी गतिविधियाँ धर्म का हिस्सा हैँ. ध्यान देँ तब पायेंगेँ , ये सभी किसी ना किसी रुप मेँ हम पर साकारात्मक असर डालतीँ हैँ. अगर गौर करेँ, तब पयेँगेँ ये सभी व्यवहार किसी ना किसी रुप में मनोवैज्ञानिक
- ये आत्म प्रेरणा या autosuggestion देते हैँ.
- अपनी गलतियोँ को स्वीकार करने से मन से अपराध बोध/ गिल्ट कम होता है
- अंतरात्मा की आवाज सुनने की सीख, अपनी गलतियोँ को समझने की प्रेरणा देता है.
- सोने के पहले अपने दिन भर के व्यवहार की समिक्षा करने की धार्मिक शिक्षा मनोविज्ञान का आत्म निरीक्षण या introspection है.
अध्ययनोँ से भी पता चला है – ध्यान, क्षमा, स्वीकृति, आभार, आशा और प्रेम जैसी धार्मिक परंपराएँ हमारे व्यक्तित्व पर प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक असर डलता हैं।
clinical reports suggest that rehabilitation services can integrate attention to spirituality in a number of ways.
(“Spirituality and religion in psychiatric rehabilitation and recovery from mental illness”- ROGER D. FALLOT Community Connections, Inc., Washington, DC, USA International Review of Psychiatry (2001), 13, 110–116)
मानसिक स्वास्थ्य अौर भारत – समाचार ( India’s mental health scenario)
मानसिक स्वास्थ्य अौर भारत
क्या आप जानते हैं , दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या हमारे देश (2012 )में होता है। जिसे यहाँ अपराध माना जाता था। जबकि विश्व भर में आत्महत्या को गंभीर मानसिक तनाव व अवसाद का परिणाम बताया जा रहा है। अफसोस की बात है, भारत की आबादी का 27% अवसाद /depression से (विश्व स्वास्थ्य संगठन/ WHO के अनुसार) पीड़ित है। भारत जैसे विशाल देश में मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा सुविधाओं और संसाधनों की भारी कमी है।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक
विश्व में अनेक देशों में मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक रोगों जैसा महत्व दिया जा रहा है। पर हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य / रोग को छुपाया जाता है। अच्छी खबर है , कि सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य को महत्व देते हुए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक बिल तैयार किया गया है। उम्मीद है यह जल्दी हीं ठोस रूप लेगा।
जागरुकता
आज सबसे जरुरी है, लोगों में जागरुकता लाना। मानसिक समस्या को संकोच अौर शर्मिदगी नहीं समझना चाहिये। इसे छुपाने के बदले चिकित्सकिय सहायता लेना चाहिये।
लोगों पर उँगलियाँ उठना आसान हैं ,
विश्व स्तर के खिलाड़ियों को कुछ कहने से पहले ,
स्वयं उस स्तर पर पहुँचे .
खेल हो , मॉडेलिंग हो या लेखन
पहले विश्व स्तर का काम तो करो.
क्योंकि , ऐसी बातें बराबर के स्तर पर
अच्छी लगती हैं.
टैगोर जैसा नोबेल लेखक बन ,
अगर राय दिया , तब तो
उसका मोल हैं.
वरना नाम कम और प्रचार ज्यादा होगा.
ऐसी बात बोलो,
जो शोभा दे।
some valuable tips
कपूर – camphor
कपूर और उसकी खुशबू से हम सब परिचित हैं. यह हमारे पूजा पाठ में प्रतिदिन काम आता हैं. हमारे प्राचीन धर्म से जुटी वस्तुएँ अक्सर कुछ न कुछ महत्व रखती हैं.
कपूर पूजा के अतिरिक्त भी अनेक काम में लाया जा सकता हैं –
1 कपूर की 4-5 टिकिया अलमारियों , ड्रौर और कबर्ड के हर खाने में रख देने से यह फ्रेशनर का काम करता हैं. अलमारी खोलने पर इसकी भीनी – भीनी खुशबू ताजगी का एहसास कराती हैं. यह बरसात में सीलन के महक को हटाता हैं.
2 किसी कप या कटोरी में पानी में 10-15 कपूर डाल कर रखने से मक्खियों और लाही ( छोटी मक्खियों जैसे कीडे ) से छुटकारा मिलता हैं.
3. पोछे के पानी में 2-4 कपूर की टिकिया चूर कर डालने से कीडे और मक्खियों में कमी आती हैं. यह भी मान्यता हैं , इससे घर के वास्तु दोष दूर होते हैं.
ये आजमाये , परखे और लाभदायक नुस्खे हैं.
धोखा
सुषमा बड़ी साधारण सी लड़की थी. बदसूरत तो नहीँ कहेंगे. पर सुंदरता के भी कोई विशेष चिन्ह नहीँ थे उसमे. चपटी और आगे से फैली नासिका ने चेहरे को थोड़ा और बिगाड़ दिया था.
अचानक ही एक दिन बड़े अच्छे परिवार से रिश्ता आया. सब हैरान थे. चट मँगनी और पट ब्याह हो गया. बारात और दूल्हे को देख सुषमा की साखियां, रिश्तेदा और मुहल्ला रश्क़ से बोल उठा – सब इतना अच्छा है. तो क्या हुआ , लड़का तो बेरोजगार ही है ना ?
ससुराल पहुँच कर सुषमा भी वहाँ की रौनक देख बौरा गई. उसे अपने सौभाग्य पर विश्वाश ही नहीँ हो रहा था. पति भी उसके पीछे दीवाना हुआ उसके चारो और लट्टू की तरह घूमता रहता. कभी बाज़ार घुमाता कभी सिनेमा दिखलाता. सास नवेली बहू कह कर उसे कुछ काम नहीँ करने देती. देवर और जेठ भी लाड बरसाते. उसे लगता , यह सब सपना तो नहीँ है ?
हाँ , दो पुत्रियों की माता , उसकी जेठानी ज़रूर थोड़ी उखड़ी -उखड़ी रहती. पर वह रसोई और बेटियों मॆं ही ज्यादा उलझी रहती. कभी उनकी दोनों प्यारी -प्यारी बेटियाँ छोटी माँ – छोटी माँ करती हुई उसके पास पहुँच जाती. ऐसे में एक दिन जेठानी भी उनके पीछे -पीछे उसके कमरे मॆं आ गई. कुछ अजीब सी दृष्टि से उसे देखती हुई बोल पड़ी -” क्यों जी , दिन भर कमरे मॆं जी नहीँ घबराता ? जानती हो … ” वह कुछ कहना चाह रहीं थी.
अभी जेठानी की बात अधूरी ही थी. तभी उसकी सास कमरे में पहुँच गई. बड़ी नाराजगी से बड़ी बहू से कहने लगी -” सुषमा को परेशान ना करो. नई बहू है. हाथों की मेहन्दी भी नहीँ छूटी है. घर के काम मैं इससे सवा महीने तक नहीँ करवाऊगी. यह तुम्हारे जैसे बड़े घर की नहीँ है. पर मुन्ना की पसंद है.” सुषमा का दिल सास का बड़प्पन देख भर आया.
नाग पंचमी का दिन था. सुषमा पति के साथ मंदिर से लौटते समय गोलगप्पे खाने और सावन के रिमझिम फुहार मॆं भीगने पति को भी खींच लाई. जब गाना गुनगुनाते अध भीगे कपडों में सुषमा ने घर में प्रवेश किया. तभी सास गरज उठी -“यह क्या किया ? पानी मॆं भींगने से मुन्ना की तबियत खराब हो जाती है.” वे दवा का डब्बा उठा लाईं. जल्दी-जल्दी कुछ दवाईया देने लगी. सुषमा हैरान थी. ज़रा सा भीगने से सासू माँ इतना नाराज़ क्यों हो गई ?
शाम होते ही उसके पति को तेज़ पेट दर्द और ज्वर हो गया. सास उससे बड़ी नाराज थीं. पारिवारिक , उम्रदराज डाक्टर आये. वह डाक्टर साहब के लिये चाय ले कर कमरे के द्वार पर पहुँची. अंदर हो रही बातें सुनकर सन्न रह गई. डाक्टर सास से धीमी आवाज़ मॆं कह रहे थे – लास्ट स्टेज में यह बदपरहेजी ठीक नहीँ है. आपको मैंने इसकी शादी करने से भी रोका था.
सुषमा के आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा. लगा जैसे चक्कर खा कर गिर जायेगी. तभी न जाने कहाँ से आ कर जेठानी ने उसे सहारा दिया. उसे बगल के कमरे में खींच कर ले गई. उन्होने फुसफुसाते हुए बताया , उसके पति को कैंसर है. इस बात को छुपा कर उससे विवाह करवाया गया. ताकि उसका पति मरने से पहले गृहस्थ सुख भोग ले.
सास ने सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोचा. पर उसका क्या होगा ? पति से उसे वितृष्णा होने लगी. ऐसे सुख की क्या लालसा , जिसमे दूसरे को सिर्फ भोग्या समझा जाये. तभी सास उसे पुकारती हुई आई – ” सुषमा….सुषमा..तुम्हें मुन्ना बुला रहा है. जल्दी चलो. वह भारी मन से कमरे के द्वार पर जा खड़ी हुई.।
बिस्तर पर उसका पति जल बिन मछली की तरह तड़प रहा था. पीडा से ओठ नीले पड गये थे. सुषमा ने कभी मौत को इतने करीब से नहीँ देखा था. घबराहट से उसके क़दम वही थम गये. तभी अचानक उसके पति का शरीर पीडा से ऐंठ गया और आँखों की पुतलिया पलट गई.
सास जलती नज़रों से उसे देख कर बुदबुदा उठी – भाग्यहीन , मनहूस, मेरे बेटे को खा गई. उससे लाड़ करनेवाला ससुराल , और उसे प्यार से पान के पत्ते जैसा फेरने वाली सास पल भर में बदल गये. सास हर समय कुछ ना कुछ उलाहना देती रहती.सुषमा प्रस्तर पाषाण प्रतिमा बन कर रह गई. उसके बाद सुषमा को कुछ सुध ना रहा. सास ने ठीक तेरहवीं के दिन, सफेद साड़ी में, सारे गहने उतरवा कर घर के पुराने ड्राइवर के साथ उसे उसके मैके भेज दिया.
सुषमा की माँ ने दरवाजा खोला. सुषमा द्वार पर वैधव्य बोझ से सिर झुकाये खड़ी थी. वह सचमुच पत्थर बन गई थी. वह पूरा दिन किसी अँधेरे कोने मॆं बैठी रहती. सास के कहे शब्द उसके मन – मस्तिष्क में जैसे नाचते रहते – भाग्यहीन, मनहूस…. उसका पूरा परिवार सदमें मॆं था. तभी एक और झटका लगा. पता चला सुषमा माँ बनने वाली हैं.
तब सुषमा के पिता ने कमर कस लिया. वैसी हालत में ही सुषमा का दाखिल तुरंत नर्सिंग की पढाई के लिये पारा मेडिकल कॉलेज में करवा दिया. सुषमा बस कठपुतली की तरह उनके कहे अनुसार काम करते रहती. उसके पापा हर रोज़ अपनी झुकती जा रही कमर सीधी करते हुए, बच्चों की तरह उसका हाथ पकड़ कर कालेज ले जाते और छुट्टी के समय उसे लेने गेट पर खड़े मिलते.
मई की तपती गर्मी में सुषमा के पुत्र ने जन्म लिया. सुषमा अनमने ढंग से बच्चे की देखभाल करती. कहते हैं, समय सबसे बड़ा मरहम होता है. सुषमा के घाव भी भरने लगे थे. पर पुत्र की और से उसका मन उचाट रहता. जिस समय ने उसके घाव भरे थे. उसी बीतते समय ने उसके वृद्ध होते पिता को तोड़ दिया था. ऊपर से शांत दिखने वाले पिता के दिल में उठते ज्वार-भाटे ने उन्हें दिल के दौरे से अस्पताल पहुँचा दिया. अडिग चट्टान जैसा सहारा देने वाले अपने पिता को कमजोर पड़ते देख सुषमा जैसी नींद से जागी. उसने पिता की रात दिन सेवा शुरू कर दी.
पिता की तबियत अब काफी ठीक लग रही थी. उनके चेहरे पर वापस लौटती रंगत देख सुषमा आश्वस्त हो गई. वह रात में पापा के अस्पताल के बेड के बगल के सोफे पर ही सोती थी. वह पुनम की रात थी. खिड़की से दमकते चाँद की चाँदनी कमरे के अंदर तक बिखर गई थी. तभी पापा ने उसे अपने पास बुला कर बिठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले बोले -” बेटा, तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा होना है. मज़बूती से….समझी ?
सुषमा ने हिचकते हुए जवाब दिया -” मेरे जैसी भाग्यहीन… ” पिता ने उसकी बात काटते हुए कहा – “तुम भग्यहीन नहीँ हो.बस एक धोखे और दुर्घटना की शिकार हो. जिसमें गलती तुम्हारी नहीँ , मेरी थी. अक्सर मुझे पश्चाताप होता है. तुम्हारी शादी करने से पहले मुझे और छानबीन करनी चहिये थी.”
भीगे नेत्रों से उन्हों ने अपनी बात आगे बढाई -“पर जानती हो बिटिया, असल गुनाहगार धोखा देनेवाले लोग है. एक बात और बेटा, तुम इसका प्रतिशोध अपने पुत्र से नहीँ ले सकती हो. उसका ख्याल तुम्हें ही रखना है.” थोड़ा मौन रह कर उसके नेत्रों में देखते हुए पिता ने कहा – “भाग्यहीन तुम नहीँ तुम्हारी सास है. बेटे को तो गंवाया ही. बहू और पोते को भी गँवा दिया. पर कभी ना कभी ईश्वर उन्हें उनकी गलतियों का आईना ज़रूर दिखायेगा. ईश्वर के न्याय पर मुझे पूर्ण विश्वाश हैं.”
पापा से बातें कर सुषमा को लगा जैसे उसके सीने पर से भारी बोझ उतर गया. पढाई करके उसे शहर के एक अच्छे अस्पताल में नौकरी मिल गई. वह बेटे के साथ खेल कर अपना दुःख भूल खिलखिलाने लगी । किसी न किसी से उसे अपने ससुराल की ख़बरें मिलती रहती. देवर की शादी और उसे बेटी होने की खबरें मिली. पर सुषमा को ससुरालवालों ने कभी उसे याद नहीँ किया. सुषमा ने भी पीछे मुड़ कर देखने के बदले अपने आप को और बेटे को सम्भालने पर ध्यान दिया.
उस दिन सुषमा अस्पताल पहुँची. वह आईसीयू के सामने से गुजर रही थी. तभी सामने देवर और जेठ आ खडे हुए. पता चला सास बीमार है. इसी अस्पताल में भर्ती हैं. उन्हें इस बात का बहुत ग़म है कि सुषमा के पुत्र के अलावा उन्हें पोता नहीँ सिर्फ पोतिया ही है. अब वह सुषमा और उसके बेटे को याद करते रहती हैं. एक बार पोते क मुँह देखना चाहती हैं.
देवर ने कहा – “भाभी, बस एक बार मुन्ना भैया के बेटे को अम्मा के पास ले आओ. सुना है बिल्कुल भैया जैसा है. ” तभी जेठ बोल पड़े – सुषमा , मैं तो कहता हूँ. अब तुम हमारे साथ रहने आ जाओ. मैं कल सुबह ही तुम्हे लेने आ जाता हूँ. सुषमा बिना कुछ जवाब दिये अपनी ड्यूटी कक्ष में चली गई.वह उनकी बेशर्मी देख वह अवाक थी. वह चुपचाप अपना काम कर रहीं थी. पर उसके माथे पर पड़े शिकन से स्पष्ट था, उसके मन में बहुत सी बातो का तूफान चल रहा हैं.
वह सोंच रहीं थी , पहले तो उसे खिलौना समझ मरनासन्न पुत्र की कामना पूरी करने के लिये धोखे से विवाह करवाया. बाद में दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक दिया. आज़ अपनी पौत्रियों को पौत्र से कम आँका जा रहा है. क्योंकि वे लड़कियाँ हैं. अच्छा है वह आज़ ऐसे ओछे परिवार का हिस्सा नहीँ है. क्या उसके पुत्र को ऐसे लोगों के साथ रख कर उन जैसा बनने देना चाहिये ? बिल्कुल नहीँ. वह ऐसा नहीँ होने देगी. मन ही मन उसने कुछ निर्णय लिया. घर जाने से पहले उसने छुट्टी की अर्जी दी.
उसी रात को वह ट्रेन से बेटे को ले कर निकट के दूसरे शहर चली गई. वहाँ के अच्छे बोर्डिंग स्कूल में बेटे का नाम लिखवा दिया. काफी समय से बेटे का दाखिला इस स्कूल में करवाने का मन बना रहीं थी. वह तीन -चार दिनों के बाद वापस घर लौटी.अगले दिन अस्पताल के सामने ही देवर मिल गया. उसे देख कर लपकता हुआ आया और बोल पड़ा -भाभी , अम्मा की तबियत और बिगड़ गई हैं. आप कहाँ थी ?
सुषमा चुपचाप हेड मेट्रन के कमरे में अपनी ड्यूटी मालूम करने चली गई. उस दिन उसकी ड्यूटी उसके सास के कमरे में थी. वह कमरे में जा कर दवाईया देने लगी. सास उसके बेटे के बारे में पूछने लगी. सुषमा ने शालीनता से कहा – “ईश्वर ने आपके घर इतनी कन्याओं को इसलिये भेजा हैं ताकि आप उनका सम्मान करें. जब तक आप यह नहीँ सीखेंगी , तब तक आप अपने इकलौते पौत्र का मुँह नहीँ देख सकतीं.”
सास क चेहरा तमतमा गया. लाल और गुस्से भरी आँखों से उसे घुरते हुए बोल पड़ी – “भाग्यहीन .. तुम धोखा कर रहीं हो , मेरे पौत्र को छुपा कर नहीँ रख सकतीं हो. lतुम्हारे जैसी मामूली लड़की की औकात नहीँ थी मेरे घर की बहू बनने की…” सुषमा ने उनकी बात बीच में काटते हुए कहा “भाग्यहीन मैं नहीँ आप हैं. सब पा कर भी खो दिया. आपने मुझे धोखा दिया पर भगवान को धोखा दे पाई क्या ? आपको क्या लगता हैं एक सामान्य और मामूली लड़की का दिल नहीँ होता हैं ? उसे दुख तकलीफ़ की अनुभूति नहीँ होती? एक बात और हैं, देखिये आज़ आपको मेरे जैसी मामूली लड़की के सामने इतना अनुनय – विनय करना पड रहा है.”
अगली सुबह सास के कमरे के आगे भीड़ देख तेज़ कदमों से वहाँ पहुँची. पता चला अभी -अभी दिल का दौरा पड़ने से सास गुजर गई. पास खडे अस्पताल के वार्ड बॉय को कहते सुना -” दिल की मरीज थीं. कितनी बार डाक्टर साहब ने ने इन्हें शांत रहने की सलाह दी थी. अभी भी ये अपनी बहुओं को बेटा ना पैदा करने के लिये जोर – जोर से कोस रहीं थीं. उससे ही तेज़ दिल का दौरा पड़ा.”
सुषमा ने पापा को फोन कर सास के गुजरने की ख़बर दी. वह आफिस में माथे पर हाथ रखे बैठी सोंचा में डूबी थी -पौत्र से भेंट ना करा कर उसने गलती कर दी क्या ? तभी पीछे से पापा की आवाज़ आई – ” सुषमा, जिसके पास सब कुछ हो फ़िर भी खुश ना हो. यह उसकी नियति हैं. यह ईश्वर की मर्जी और न्याय हैं.”
हमारे समाज में जब नारी की चर्चा होती है या विवाह की बातें होती हैं। तब विषय अक्सर उसका रुप -रंग होता है। विरले हीं कोई नारी की योग्यता को प्राथमिकता देता है। क्या नारी सिर्फ भोग्या रहेगी?
Subscribe to:
Posts (Atom)