मनोविज्ञान और हम
Tuesday, September 13, 2016
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हिन्दी कविता
वक्त -कविता
"वक्त -कविता "
कभी तो.थोड़ा थम जा
ऐ वक्त
साँस लेने दे.
ज़रा सुस्ताने दे.
घड़ी की ये सूईया भी
भागी जा रही हैं
बिना पैरों ,
अपनी दो हाथों के सहारे.
कब मुट्ठी के रेत की
तरह तुम फिसल गये वक्त.
पता ही नहीँ चला.
वह तो आईना था.
जिसने तुम्हारी चुगली कर दी.
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