मनोविज्ञान और हम
Tuesday, September 13, 2016
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हिंदी कविता
चोट (कविता)
"चोट (कविता)"
जीवन के इस
दौङ
में ना जाने कितनी बार
चोटें लगीं।
आँखों में कुछ कतरे
आँसू भी छलक आए।
पर अब जाना।
वे तो हौसला-अफजाई कर गये।
मजबूत बना गये।
हिम्मत बढ़ा गये।
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