Sunday, September 18, 2016

रौशन जहाँ -कविता

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golden

माँ के गर्भ में अजन्मा शिशु अपने 

को सुरक्षित समझ ,बाहर आने पर 

रोता हैं.

इस दुनिया को अपना घर मान 

इंसान भी , इसे छोड़ने के 

डर से रोता हैं.

क्यों यह नहीँ सोचता ?

आगे रौशन  और भी “जहाँ ” हैं.





7 comments:

  1. उफ्फ इतने गहरे , इतनी सरलता से कवि मन ही उतर सकता है मित्र , संयोगवश आजकल मैं खुद धर्म अध्यात्म , जीवन मृत्यु और दर्शन को समझने की कोशिश में ढेर सारी किताबें पढ़ रहा हूँ ..एक नज़रिया ये भी सही ..बहुत सुन्दर सरल और प्रभावी है जी

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  2. और हाँ आपके ब्लॉग को बुकमार्क कर रहा हूँ जल्दी ही अपने ब्लॉग पर आपका परिचय करवाना है अपनी मित्र मंडली से , उनके लिए लाभदायाक और आपके लिए यादगार होगा | लिखती रहे आप ..

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  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 13/10/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  4. संभावनाएं अनंत हैं।

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  5. बहुत सुन्दर और प्रभावी

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  6. रेखा जी, दुसरे जहां के बारे में इंसान को कुछ भी पता नहीं है। संभवत: इसी कारण इंसान इस जहांंसे जाने में डरता है।

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