Wednesday, January 2, 2019

साँसे बचाए रखना

सागर पार से कितनी आवाज़ें दीं-
इंतज़ार करना…..
साँसे बचाए रखना .
शमा जलाए रखना ,
आस बनाए रखना .
गहराई और अथाह जल…….
लहरों का सैलाब ,
सागर में ज़्यादा था
या
आँखों से बहते
आँसुओं के लहरों में.
कुछ समझ नहीं आया .
बहते दर्द के सैलाब से धुँधली आँखें
कुछ देख नहीं पाई.
और इंतज़ार बस इंतज़ार रह गया …….

बिना ग़लती की सज़ा

ना जाने क्यों कभी कभी
किसी दिन
यादें बड़ी बेदर्द हो जातीं हैं.
बार बार  कर यातनाएं दे जातीं  हैं।
जब लगता है,
शायद अब सब ठीक है।
तभी ना जाने कहाँ से एक छोटी सी
सुराख़ बनायादों की  कड़ी…….जंजीर बन जाती है।
बिना ग़लती की सज़ा दे जाती हैं.