बिना ग़लती की सज़ा
ना जाने क्यों कभी कभी
किसी दिन
यादें बड़ी बेदर्द हो जातीं हैं.
बार बार आ कर यातनाएं दे जातीं हैं।
जब लगता है,
शायद अब सब ठीक है।
तभी ना जाने कहाँ से एक छोटी सी
सुराख़ बना, यादों की कड़ी…….जंजीर बन जाती है।
बिना ग़लती की सज़ा दे जाती हैं.
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