
हमारे देश में बच्चों के लिए कड़े कानून की जरूरत कई बार महसूस की गई। पहले भारत में बाल मुकदमों की प्रक्रिया जटिल और थकाने वाला था। अतः भारत की संसद अधिनियम में 22 मई 2012 को बाल यौन शोषण के खिलाफ बच्चों का संरक्षण कानून पारित किया।
आज विश्व में बच्चों की सब से बड़ी आबादी भारत में है । हमारे देश में लगभग 42 प्रतिशत आबादी अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की है। अतः बच्चों का स्वास्थ्य और सुरक्षा महत्वपूर्ण है। ये बच्चे भविष्य की अनमोल निधि है।
यह अधिनियम अठारह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बनाया गया है। यह बच्चों के स्वस्थ, शारीरिक, भावनात्मक , बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने को महत्व देता है। बच्चे के साथ मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न या दुर्व्यवहार दंडनीय है। इस अधिनियम के तहत कठोर दंड का प्रावधान है ।
बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों को नियंत्रित करने के लिए “प्रोटेक्सन ऑफ चिल्ड्रेन फ़्रोम सेक्सुयल ओफ़ेंसेस” कानून बनाया गया। यह दो वर्ष पहले बच्चों के सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून है। पर यह कानून बहुत कम लोगों को मालूम है। अतः इसका पूरा फ़ायदा लोगों को नहीं मिल रहा है। इसलिए लोगों के साथ-साथ बच्चों और सभी माता-पिता को भी इसकी समझ और जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही बच्चों में सही-गलत व्यवहार की समझ और निर्भीकता भी विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सभी माता-पिता बच्चों की सभी बातों को सुने और समझे।
लोगों में जागरूकता लाने के लिए मीडिया, लेखकों, पत्रकारों को सहयोग महत्वपूर्ण है। अतः कलम की ताकत का भरपूर उपयोग करना चाहिए।
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