Thursday, August 25, 2016
Wednesday, August 24, 2016
अपनी जङें मजबूत करें – बांस की तरह (प्रेरक लेख / motivational thought )

बांस एक तरह का घास है। चीनी बांस के पेड़ छह सप्ताह में 80 फुट लम्बे हो जाते है। यह बङी हैरानी की बात है। पर सच्चाई यह है कि इसे लगाने के चार वर्ष बाद तक इस में विकास के कोई चिन्ह नहीं दिखते। पर इसे पानी अौर पोषण उपलब्ध कराया जाता है। चार वर्ष के बाद पांचवें वर्ष में एक चमत्कार की तरह बांस के पेड़ सिर्फ छह सप्ताह में 80 फुट बढ़ जाते हैं।
यह चमत्कार नहीं है। इतने समय यह निष्क्रिय नहीं रहता। चार वर्षौं के दौरान बांस अपने अस्सी फुट ऊँचाई को संभालने के लिये अपनी जङों को बनाता अौर मजबूत करता रहता है। वर्ना यह अचानक अपनी 80 फुट लम्बी काया को संभाल नहीं सकेगा।
हम भी थोङे मेहनत के बाद हीं सफलता की कामना करने लगते हैं। जब कि जड़ें मजबूत बनने के लिये धैर्य अौर परिश्रम की जरुरत होती है। प्रतिकूल परिस्थितियों और चुनौती का सामना करने की शक्ति अौर सफलता संभालने के लिए मजबूत नींव बनने में समय लगता है। इस लिये असफलता से ङरने के बदले इसे जङों या आधार अौर नींव का निर्माण काल मानना चाहिये। जब एक घास में इतना सामर्थ है तब हम तो ईश्वार की सर्वौत्तम रचना हैं।
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मनोविज्ञान#3 मन मेँ गिल्ट/ अपराध बोध ना पालेँ (व्यक्तित्व पर प्रभाव) Guilt (emotion)

( Alice Miller claims that “many people suffer all their lives from this oppressive feeling of guilt.”
Feelings of guilt can prompt subsequent virtuous behaviour. Guilt’s are one of the most powerful forces in undermining one’s self image and self-esteem. Try to resolve it.)
गिल्ट या अपराध बोध एक तरह की भावना है. यह हमारे नैतिकता का उल्लंघन, गलत आचरण जैसी बातोँ से उत्पन्न होता है. इसके ये कारण हो सकतेँ हैँ –
बच्चोँ/ बचपन मेँ अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा ना उतरने की भावना.
अपने को दोषी/ अपराधी महसूस करना.
किसी को चाह कर भी मदद/ पर्याप्त मदद न कर पाने का अह्सास.
अपने आप को किसी और की तुलना में कम पाना.
हम सब के जीवन मेँ कभी ना कभी ऐसा होता हैँ. हम ऐसा व्यवहार कर जाते हैँ, जिससे पश्चाताप और आंतरिक मानसिक संघर्ष की भावना पैदा होती है. यह हमारे अंदर तनाव उत्पन्न करता है. जब यह अपराध-बोध ज्यादा होने लगता है, तब यह किसी ना किसी रुप मेँ हमारे व्यवहार को प्रभावित करता है.
अपने व्यवहार को समझे और सुधारेँ –
अपने गिल्ट को समझने की कोशिश करेँ.
अपनी गलतियोँ को स्वीकार कर सुधार लायेँ. अस्विकार ना करेँ.
तर्कसंगत तरीके से ध्यान देँ गिल्ट अनुचित तो नहीँ है
तर्कसंगत गिल्ट व्यवहार सुधारने मेँ मदद करता है.
माफी माँगना सीखे.
भूलवश गलती हो, जरुर माफी मांगे.
अपनी गलतियोँ को अनदेखी ना करेँ.
बच्चोँ / लोगोँ से अत्यधिक अपेक्षा ना रखेँ. वे जैसे हैँ वैसे हीँ उन्हेँ स्वीकार करेँ.
पूर्णता किसी में मौजूद नहीं है।
अपने आप को जैसे आप हैँ वैसे हीँ पसंद करेँ. तुलना के बदले आत्म स्वीकृति की भावना मह्त्वपुर्ण है.
बच्चोँ को हमेशा टोक कर शर्मिंदा ना करेँ.
जरुरत हो तब बेझिझक कौंसिलर से मदद लेँ.
गिल्ट आत्म छवि, आत्मविश्वास, और आत्म सम्मान कम करता हैं । गहरा गिल्ट चिंता, अवसाद , बेचैनी या विभिन्न मनोदैहिक समस्याओं के रूप में दिखाता है. इसलिये गिल्ट की भावनाओं को दूर करना चाहिये.
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धोखा (कहानी)
सुषमा बड़ी साधारण सी लड़की थी. बदसूरत तो नहीँ कहेंगे. पर सुंदरता के भी कोई विशेष चिन्ह नहीँ थे उसमे. चपटी और आगे से फैली नासिका ने चेहरे को थोड़ा और बिगाड़ दिया था.
अचानक ही एक दिन बड़े अच्छे परिवार से रिश्ता आया. सब हैरान थे. चट मँगनी और पट ब्याह हो गया. बारात और दूल्हे को देख सुषमा की साखियां, रिश्तेदा और मुहल्ला रश्क़ से बोल उठा – सब इतना अच्छा है. तो क्या हुआ , लड़का तो बेरोजगार ही है ना ?
ससुराल पहुँच कर सुषमा भी वहाँ की रौनक देख बौरा गई. उसे अपने सौभाग्य पर विश्वाश ही नहीँ हो रहा था. पति भी उसके पीछे दीवाना हुआ उसके चारो और लट्टू की तरह घूमता रहता. कभी बाज़ार घुमाता कभी सिनेमा दिखलाता. सास नवेली बहू कह कर उसे कुछ काम नहीँ करने देती. देवर और जेठ भी लाड बरसाते. उसे लगता , यह सब सपना तो नहीँ है ?
हाँ , दो पुत्रियों की माता , उसकी जेठानी ज़रूर थोड़ी उखड़ी -उखड़ी रहती. पर वह रसोई और बेटियों मॆं ही ज्यादा उलझी रहती. कभी उनकी दोनों प्यारी -प्यारी बेटियाँ छोटी माँ – छोटी माँ करती हुई उसके पास पहुँच जाती. ऐसे में एक दिन जेठानी भी उनके पीछे -पीछे उसके कमरे मॆं आ गई. कुछ अजीब सी दृष्टि से उसे देखती हुई बोल पड़ी -” क्यों जी , दिन भर कमरे मॆं जी नहीँ घबराता ? जानती हो … ” वह कुछ कहना चाह रहीं थी.
अभी जेठानी की बात अधूरी ही थी. तभी उसकी सास कमरे में पहुँच गई. बड़ी नाराजगी से बड़ी बहू से कहने लगी -” सुषमा को परेशान ना करो. नई बहू है. हाथों की मेहन्दी भी नहीँ छूटी है. घर के काम मैं इससे सवा महीने तक नहीँ करवाऊगी. यह तुम्हारे जैसे बड़े घर की नहीँ है. पर मुन्ना की पसंद है.” सुषमा का दिल सास का बड़प्पन देख भर आया.
नाग पंचमी का दिन था. सुषमा पति के साथ मंदिर से लौटते समय गोलगप्पे खाने और सावन के रिमझिम फुहार मॆं भीगने पति को भी खींच लाई. जब गाना गुनगुनाते अध भीगे कपडों में सुषमा ने घर में प्रवेश किया. तभी सास गरज उठी -“यह क्या किया ? पानी मॆं भींगने से मुन्ना की तबियत खराब हो जाती है.” वे दवा का डब्बा उठा लाईं. जल्दी-जल्दी कुछ दवाईया देने लगी. सुषमा हैरान थी. ज़रा सा भीगने से सासू माँ इतना नाराज़ क्यों हो गई ?
शाम होते ही उसके पति को तेज़ पेट दर्द और ज्वर हो गया. सास उससे बड़ी नाराज थीं. पारिवारिक , उम्रदराज डाक्टर आये. वह डाक्टर साहब के लिये चाय ले कर कमरे के द्वार पर पहुँची. अंदर हो रही बातें सुनकर सन्न रह गई. डाक्टर सास से धीमी आवाज़ मॆं कह रहे थे – लास्ट स्टेज में यह बदपरहेजी ठीक नहीँ है. आपको मैंने इसकी शादी करने से भी रोका था.
सुषमा के आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा. लगा जैसे चक्कर खा कर गिर जायेगी. तभी न जाने कहाँ से आ कर जेठानी ने उसे सहारा दिया. उसे बगल के कमरे में खींच कर ले गई. उन्होने फुसफुसाते हुए बताया , उसके पति को कैंसर है. इस बात को छुपा कर उससे विवाह करवाया गया. ताकि उसका पति मरने से पहले गृहस्थ सुख भोग ले.
सास ने सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोचा. पर उसका क्या होगा ? पति से उसे वितृष्णा होने लगी. ऐसे सुख की क्या लालसा , जिसमे दूसरे को सिर्फ भोग्या समझा जाये. तभी सास उसे पुकारती हुई आई – ” सुषमा….सुषमा..तुम्हें मुन्ना बुला रहा है. जल्दी चलो. वह भारी मन से कमरे के द्वार पर जा खड़ी हुई.।
बिस्तर पर उसका पति जल बिन मछली की तरह तड़प रहा था. पीडा से ओठ नीले पड गये थे. सुषमा ने कभी मौत को इतने करीब से नहीँ देखा था. घबराहट से उसके क़दम वही थम गये. तभी अचानक उसके पति का शरीर पीडा से ऐंठ गया और आँखों की पुतलिया पलट गई.

सास जलती नज़रों से उसे देख कर बुदबुदा उठी – भाग्यहीन , मनहूस, मेरे बेटे को खा गई. उससे लाड़ करनेवाला ससुराल , और उसे प्यार से पान के पत्ते जैसा फेरने वाली सास पल भर में बदल गये. सास हर समय कुछ ना कुछ उलाहना देती रहती.सुषमा प्रस्तर पाषाण प्रतिमा बन कर रह गई. उसके बाद सुषमा को कुछ सुध ना रहा. सास ने ठीक तेरहवीं के दिन, सफेद साड़ी में, सारे गहने उतरवा कर घर के पुराने ड्राइवर के साथ उसे उसके मैके भेज दिया.
सुषमा की माँ ने दरवाजा खोला. सुषमा द्वार पर वैधव्य बोझ से सिर झुकाये खड़ी थी. वह सचमुच पत्थर बन गई थी. वह पूरा दिन किसी अँधेरे कोने मॆं बैठी रहती. सास के कहे शब्द उसके मन – मस्तिष्क में जैसे नाचते रहते – भाग्यहीन, मनहूस…. उसका पूरा परिवार सदमें मॆं था. तभी एक और झटका लगा. पता चला सुषमा माँ बनने वाली हैं.
तब सुषमा के पिता ने कमर कस लिया. वैसी हालत में ही सुषमा का दाखिल तुरंत नर्सिंग की पढाई के लिये पारा मेडिकल कॉलेज में करवा दिया. सुषमा बस कठपुतली की तरह उनके कहे अनुसार काम करते रहती. उसके पापा हर रोज़ अपनी झुकती जा रही कमर सीधी करते हुए, बच्चों की तरह उसका हाथ पकड़ कर कालेज ले जाते और छुट्टी के समय उसे लेने गेट पर खड़े मिलते.
मई की तपती गर्मी में सुषमा के पुत्र ने जन्म लिया. सुषमा अनमने ढंग से बच्चे की देखभाल करती. कहते हैं, समय सबसे बड़ा मरहम होता है. सुषमा के घाव भी भरने लगे थे. पर पुत्र की और से उसका मन उचाट रहता. जिस समय ने उसके घाव भरे थे. उसी बीतते समय ने उसके वृद्ध होते पिता को तोड़ दिया था. ऊपर से शांत दिखने वाले पिता के दिल में उठते ज्वार-भाटे ने उन्हें दिल के दौरे से अस्पताल पहुँचा दिया. अडिग चट्टान जैसा सहारा देने वाले अपने पिता को कमजोर पड़ते देख सुषमा जैसी नींद से जागी. उसने पिता की रात दिन सेवा शुरू कर दी.
पिता की तबियत अब काफी ठीक लग रही थी. उनके चेहरे पर वापस लौटती रंगत देख सुषमा आश्वस्त हो गई. वह रात में पापा के अस्पताल के बेड के बगल के सोफे पर ही सोती थी. वह पुनम की रात थी. खिड़की से दमकते चाँद की चाँदनी कमरे के अंदर तक बिखर गई थी. तभी पापा ने उसे अपने पास बुला कर बिठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले बोले -” बेटा, तुम्हे अपने पैरों पर खड़ा होना है. मज़बूती से….समझी ?
सुषमा ने हिचकते हुए जवाब दिया -” मेरे जैसी भाग्यहीन… ” पिता ने उसकी बात काटते हुए कहा – “तुम भग्यहीन नहीँ हो.बस एक धोखे और दुर्घटना की शिकार हो. जिसमें गलती तुम्हारी नहीँ , मेरी थी. अक्सर मुझे पश्चाताप होता है. तुम्हारी शादी करने से पहले मुझे और छानबीन करनी चहिये थी.”
भीगे नेत्रों से उन्हों ने अपनी बात आगे बढाई -“पर जानती हो बिटिया, असल गुनाहगार धोखा देनेवाले लोग है. एक बात और बेटा, तुम इसका प्रतिशोध अपने पुत्र से नहीँ ले सकती हो. उसका ख्याल तुम्हें ही रखना है.” थोड़ा मौन रह कर उसके नेत्रों में देखते हुए पिता ने कहा – “भाग्यहीन तुम नहीँ तुम्हारी सास है. बेटे को तो गंवाया ही. बहू और पोते को भी गँवा दिया. पर कभी ना कभी ईश्वर उन्हें उनकी गलतियों का आईना ज़रूर दिखायेगा. ईश्वर के न्याय पर मुझे पूर्ण विश्वाश हैं.”
पापा से बातें कर सुषमा को लगा जैसे उसके सीने पर से भारी बोझ उतर गया. पढाई करके उसे शहर के एक अच्छे अस्पताल में नौकरी मिल गई. वह बेटे के साथ खेल कर अपना दुःख भूल खिलखिलाने लगी । किसी न किसी से उसे अपने ससुराल की ख़बरें मिलती रहती. देवर की शादी और उसे बेटी होने की खबरें मिली. पर सुषमा को ससुरालवालों ने कभी उसे याद नहीँ किया. सुषमा ने भी पीछे मुड़ कर देखने के बदले अपने आप को और बेटे को सम्भालने पर ध्यान दिया.
उस दिन सुषमा अस्पताल पहुँची. वह आईसीयू के सामने से गुजर रही थी. तभी सामने देवर और जेठ आ खडे हुए. पता चला सास बीमार है. इसी अस्पताल में भर्ती हैं. उन्हें इस बात का बहुत ग़म है कि सुषमा के पुत्र के अलावा उन्हें पोता नहीँ सिर्फ पोतिया ही है. अब वह सुषमा और उसके बेटे को याद करते रहती हैं. एक बार पोते क मुँह देखना चाहती हैं.
देवर ने कहा – “भाभी, बस एक बार मुन्ना भैया के बेटे को अम्मा के पास ले आओ. सुना है बिल्कुल भैया जैसा है. ” तभी जेठ बोल पड़े – सुषमा , मैं तो कहता हूँ. अब तुम हमारे साथ रहने आ जाओ. मैं कल सुबह ही तुम्हे लेने आ जाता हूँ. सुषमा बिना कुछ जवाब दिये अपनी ड्यूटी कक्ष में चली गई.वह उनकी बेशर्मी देख वह अवाक थी. वह चुपचाप अपना काम कर रहीं थी. पर उसके माथे पर पड़े शिकन से स्पष्ट था, उसके मन में बहुत सी बातो का तूफान चल रहा हैं.
वह सोंच रहीं थी , पहले तो उसे खिलौना समझ मरनासन्न पुत्र की कामना पूरी करने के लिये धोखे से विवाह करवाया. बाद में दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक दिया. आज़ अपनी पौत्रियों को पौत्र से कम आँका जा रहा है. क्योंकि वे लड़कियाँ हैं. अच्छा है वह आज़ ऐसे ओछे परिवार का हिस्सा नहीँ है. क्या उसके पुत्र को ऐसे लोगों के साथ रख कर उन जैसा बनने देना चाहिये ? बिल्कुल नहीँ. वह ऐसा नहीँ होने देगी. मन ही मन उसने कुछ निर्णय लिया. घर जाने से पहले उसने छुट्टी की अर्जी दी.
उसी रात को वह ट्रेन से बेटे को ले कर निकट के दूसरे शहर चली गई. वहाँ के अच्छे बोर्डिंग स्कूल में बेटे का नाम लिखवा दिया. काफी समय से बेटे का दाखिला इस स्कूल में करवाने का मन बना रहीं थी. वह तीन -चार दिनों के बाद वापस घर लौटी.अगले दिन अस्पताल के सामने ही देवर मिल गया. उसे देख कर लपकता हुआ आया और बोल पड़ा -भाभी , अम्मा की तबियत और बिगड़ गई हैं. आप कहाँ थी ?
सुषमा चुपचाप हेड मेट्रन के कमरे में अपनी ड्यूटी मालूम करने चली गई. उस दिन उसकी ड्यूटी उसके सास के कमरे में थी. वह कमरे में जा कर दवाईया देने लगी. सास उसके बेटे के बारे में पूछने लगी. सुषमा ने शालीनता से कहा – “ईश्वर ने आपके घर इतनी कन्याओं को इसलिये भेजा हैं ताकि आप उनका सम्मान करें. जब तक आप यह नहीँ सीखेंगी , तब तक आप अपने इकलौते पौत्र का मुँह नहीँ देख सकतीं.”
सास क चेहरा तमतमा गया. लाल और गुस्से भरी आँखों से उसे घुरते हुए बोल पड़ी – “भाग्यहीन .. तुम धोखा कर रहीं हो , मेरे पौत्र को छुपा कर नहीँ रख सकतीं हो. lतुम्हारे जैसी मामूली लड़की की औकात नहीँ थी मेरे घर की बहू बनने की…” सुषमा ने उनकी बात बीच में काटते हुए कहा “भाग्यहीन मैं नहीँ आप हैं. सब पा कर भी खो दिया. आपने मुझे धोखा दिया पर भगवान को धोखा दे पाई क्या ? आपको क्या लगता हैं एक सामान्य और मामूली लड़की का दिल नहीँ होता हैं ? उसे दुख तकलीफ़ की अनुभूति नहीँ होती? एक बात और हैं, देखिये आज़ आपको मेरे जैसी मामूली लड़की के सामने इतना अनुनय – विनय करना पड रहा है.”
अगली सुबह सास के कमरे के आगे भीड़ देख तेज़ कदमों से वहाँ पहुँची. पता चला अभी -अभी दिल का दौरा पड़ने से सास गुजर गई. पास खडे अस्पताल के वार्ड बॉय को कहते सुना -” दिल की मरीज थीं. कितनी बार डाक्टर साहब ने ने इन्हें शांत रहने की सलाह दी थी. अभी भी ये अपनी बहुओं को बेटा ना पैदा करने के लिये जोर – जोर से कोस रहीं थीं. उससे ही तेज़ दिल का दौरा पड़ा.”
सुषमा ने पापा को फोन कर सास के गुजरने की ख़बर दी. वह आफिस में माथे पर हाथ रखे बैठी सोंचा में डूबी थी -पौत्र से भेंट ना करा कर उसने गलती कर दी क्या ? तभी पीछे से पापा की आवाज़ आई – ” सुषमा, जिसके पास सब कुछ हो फ़िर भी खुश ना हो. यह उसकी नियति हैं. यह ईश्वर की मर्जी और न्याय हैं.”
हमारे समाज में जब नारी की चर्चा होती है या विवाह की बातें होती हैं। तब विषय अक्सर उसका रुप -रंग होता है। विरले हीं कोई नारी की योग्यता को प्राथमिकता देता है। क्या नारी सिर्फ भोग्या रहेगी?
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आँखें ( कहानी )
मौसम सुहाना था. वर्षा की बूँदें टपटप बरस रहीं थीं. दोनों मित्रों की आँखे भी बरस रहीं थी. दोनों मित्र एक दूसरे के समधी भी थे. इन्द्र ने अपने इकलौते बेटे की शादी अपने मित्र चंद्र की एक मात्र पुत्री से कर दिया था.
दोनों दोस्त बिजनेस में आधे – आधे पार्टनर थे. वर्षों पुरानी दोस्ती सम्बन्ध में बदल जाने से अब पार्टनरशिप के हिसाब सरल हो गये थे. दोनों मित्र जाम टकराते हुये हिसाब की बात पर अक्सर कह बैठते -“छोडो यार ! अगर हिसाब कुछ ऊपर नीचे हो भी गया तब क्या फर्क पड़ता हैं ? अगर घी गिरेगा भी तो दाल में ही ना ?
दो दिनों से इन्द्र का बेटा घर वापस नहीँ आया था. खाने -पीने का शौकीन बेटा पहले भी ऐसा करता था. पर इस बार उसका फोन भी बंद था. परेशान हो कर , दोनों ने उसकी खोज ख़बर लेनी शुरू की. पुलिस स्टेशन , अस्पताल सब जगह दोनों दौड़ लगा रहे थे.
पुलिस से मिली ख़बर सुन वे गिरते पड़ते लखनऊ के पास के बर्ड सेंचुरी के करीब पहुँचे. कार सड़क के दूसरी ओर रुकवा कर दोनों उतरे. मन ही मन अपने अराध्य देव से मना रहे थे, यह ख़बर झूठी निकले. सड़क पार कर पहुँचे.
इन्द्र के जवान पुत्र का शव सड़क के किनारे पडा था. तभी पीछे से आई चीख सुन दोनों पलटे. चीख चंद्र की पूर्ण गर्भवती पुत्री की थी. वे भूल ही गये थे. वह कार में बैठी थी. बहुत रोकने करने पर भी वह साथ आ गई थी. पति के शव को तो नहीँ , पर उसके चिकेन के कुर्ते के रंग को वह दूर से ही पहचान गई. अपने हाथों से इस्त्री कर सोने के बटन लगा कर पति को पहनने के लिये दिया था.वह बदहवास सड़क पर दौड़ पड़ी और सामने से आती ट्रक से टकरा गई.
दोनों मित्रों की नज़रें एक दूसरे से मिली. दोनों मनो जड़ हो गये. उनकी कार का ड्राइवर रामधनी दौड़ता हुआ आ कर चीख पड़ा तब जैसे दोनों की तंद्रा टूटी. उनकी आँखों के सामने वर्षों पुरानी यादें नाचने लगी.
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दोनों मित्र रांची मेन रोड स्थित हनुमान मंदिर से पूजा करके निकले. मॆन रोड की भीड़ देख दोनो चिंतित हो गये. उन्हें जल्दी स्टेशन पहुँचना था. दोनों में दाँत काटी दोस्ती थी. जो भी करते साथ साथ करते. हनुमान जी की भक्ति हो या कुछ और. उनकी परेशानी बस एक थी. उन दोनों के इष्ट ब्रह्मचारी थे और वे दोनों नारी सौंदर्य के अनन्य उपासक. वरना वे लंगोट भी लाल ही बाँधते थे, ठीक हनुमान जी की तरह और सही अर्थों में लंगोटिया यार थे.
जब वे स्टेशन पहुँचे, सामने राजधानी ट्रेन खड़ी थी. दौड़ते भागते दोनों ट्रेन मॆं पहुँचे. चेहरे पर किसी रेस में ट्राफी मिलने जैसी विजय मुस्कान छा गई. चलो , हनुमान जी की कृपा से ट्रेन तो मिल गई.
सफ़र मजे में कट रही थी. दोनों ताश की गड्डी और शीतल पेय की बोतलें निकाल अपनी सीटों पर जम गये. बोतल के अंदर पेय परिवर्तन का ट्रिक दोनों ने ईजाद कर लिया था.
तभी दोनों की नज़रें पास के बर्थ पर अकेली यात्रा कर रही रूपवती और स्वस्थ युवती पर पड़ी. दोनों मित्रों एक दूसरे को आँखों ही आँखों मे देख मुस्कुराये और आपस में उस पर कुछ भद्दे जुमले कसे.
तभी वह युवती इनके पास से गुजरी. उसके जिस मोटापे पर दोनों ने व्यंग लिय था. वह स्वभाविक नहीँ था. दरअसल वह गर्भवती थी. किसी से फोन पर कह रही थी – “हाँ , खुश खबरी हैं. बडी पूजा और मन्नतों के बाद यह शुभ समय आया हैं. सोचती हूँ , इस बड़े मंगल के दिन सेतु हनुमान मंदिर में चोला चढा दूँ. उन्हें ही चिठ्ठी और अर्जी भेजी थी. उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली. ”
दोनों ने नशे में झूमते हुये कहा -” यह तो टू इन वन हैं .” और ठहाका लगाया. जल्दी ही दोनों की नशे भरी आँखें बंद होने लगी. वे अपने अपने बर्थ पर लुढ़क गये.
सुबह अँधेरे में ही ट्रेन कानपुर स्टेशन पहुँच गई. स्टेशन से बाहर उनकी लम्बी काली कार खड़ी थी. ड्राईवर रामधनी ने आगे बढ़ कर उनके बैग ले लिये. कार लखनऊ की ओर दौड़ पड़ी. रिमझिम वर्ष होने लगी थी. पूर्व में आकाश में लाली छाने लगी थी. वैसी ही लाली मित्र द्वय की आँखों में भी थी. नशा अभी उतरा नहीँ था. आँखों में नशे की खुमारी थी.
इन्द्र ने रामधनी से कार किसी चाये के दुकान पर रोकने कही। दोनों कार की पिछली सीट पर सोने की कोशिश करने लगे. रामधनी ने हँस कर पूछा – “लगता हैं रात में आप लोगों की खूब चली हैं ” रामधनी ड्राइवर कम और उनके काले कारनामों का साथी और राजदार ज्यादा था.
दोनों सिर हिला कर ठठा कर हँस पड़े और निशाचर इन्द्र ने जवाब दिया – “अरे यार ! इतने सवेरे का सूरज तो मैंने आज़ तक नहीँ देखा हैं. 10-11 बजे से पहले तो मेरी नींद ही नहीँ खुलती हैं. “
चंद्र ने आँखें खोले बगैर ट्रेन को इतनी सबेरे पहुँचने के लिये एक भद्दी गाली देते हुये कहाँ – यार बड़ी रूखी यात्रा थी और अब यह सुबह -सुबह चाय की खोज क्यों कर रहे हो? उसने अपने बैग से एक बोतल निकाल कर मुँह से लगा लिया. नशा कम होने के बदले और बढ़ गया.
एक ढाबे के सामने कार रुकी. अभी भी अँधेरा पूरी तरह छटा नहीँ था. बारिश तेज हो गई थी. ठीक आगे की टैक्सी से ट्रेन वाली युवती उतर रही थी. दोनों मित्रों की आँखें धूर्तता से चमकने लगी. रामधनी और उनमें कुछ बातें हुई. रामधनी ने चारो ओर नज़रें घुमाई. चारो ओर सन्नाटा छाया था.
रामधनी ने कार महिला के बिलकुल पास रोका. जब तक गर्भभार से धीमी चलती वह महिला कुछ समझ पाती. पीछे की गेट खोल दोनों ने उसे अंदर खींच लिया. कार के काले शीशे बंद हो गये. कार तेज़ी से सड़क पर दौड़ने लगी.
हाथ -पैर मारती महिला चीख रहीं थी. वह गिडगिडाते हुये बोल उठी – “मैं माँ बनने वाली हूँ. मुझे छोड़ दो. भगवन से डरो.”
रामधनी ने हड़बड़ा कर कहा -“साहब बड़ी भूल हो गई. यह तो पेट से हैं…यह माँ बननेवाली हैं. यह बड़ा भरी अन्याय होगा.” और उसने कार खचाक से रोक दी. कार एक झटके से रुक गई. जब तक किसी की समझ में बात आती. वह युवती कार का द्वार खोल बाहर निकल गई और सड़क के दूसरी ओर से आते वाहन से टकरा कर गिर पड़ी.वाहन बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ गया. सुनसान सड़क पर युवती की दर्दनाक चीत्कार गूँज उठी.. ।पास के पेङो से पक्षी भी शोर मचाते उङ गये।
तीनो भागते हुये उसके करीब पहुँचे. उसकी आँखें बंद हो रहीं थी. आँखों के कोरों से आँसू बह रहे थे. शरीर दर्द से ऐंठ रहा था. उसने अधखुली आँखों से उन्हे देखा. लड़खडाती और दर्द भरी आवाज़ में उसने कहा – ” तुम्हा… तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा. – तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा.” रक्तिम होती सड़क पर उसने आखरी साँसें ली. और उसकी अध खुली आँखें ऐसे पथरा गई. जैसे वे आँखे उन्हें ही देख रहीं हों.

रामधनी पागलों की तरह बडबडाने लगा -” भाई जी, उस ने बद्दुआ दी हैं. यह तो पूरी हो कर रहेगी. माँ बनने वाली थी. उसकी बात खाली नहीँ जायेगी. आपने देखा, उसकी आँखों में ? प्रायश्चित करना ही होगा. प्रायश्चित…”
दोनों मित्र घबड़ा गये. उनका नशा उतर गया था. अपने को सम्भल कर वे झट कार के पास लौटे. चारो ओर फैला सन्नाटा देख चैन की साँस ली, चलो किसी ने देखा तो नहीँ. शायद अपने सर्वज्ञ इष्टदेव का उन्हे स्मरण नहीँ आया.
ललाट पर आये पसीने और बरसात की बूँदें घुल मिल गये थे. इन्द्र ने तुरंत निर्णय लिया और बौखलाये रामधनी को पीछे की सीट पर ठेल कर बैठा स्वयं चालक की सीट पर बैठ गया. चंद्र उसके बगल की सीट पर बैठ गया.
लखनऊ पहुँचने तक कार में मौन छाया रहा. हजरतगंज चौराहे की लाल बत्ती पर कार रुकी. तभी अचानक रामधनी कार से उतर कर हनुमान मंदिर की ओर दौड़ गया. दोनों मित्र भी कार किनारे रोक उसके पीछे पीछे मंदिर पहुँचे.
उन्होंने देखा रामधनी मंदिर के फर्श पर साष्टांग लोट रहा हैं. और हनुमान जी के चरणों में ललाट टिकाये कुछ बुदबुदा रहा हैं. पुजारी हैरानी से उसे देख रहे हैं.
चंद्र ने लपक कर उसे उठाया और तेज़ी से कार की ओर बढ़ गया. इन्द्र पुजारी से माफी माँगने के अंदाज़ में बोल पड़ा -“पत्नी की बीमारी से बड़ा परेशान हैं , बेचारा.” रामधनी को रास्ते भर मुँह ना खोलने का निर्देश दोनों देते रहे , और वह लगातार प्रायश्चित्त की बात करता रहा.
कभी कभी दोनों उस घटना को याद करते. तब लगता जैसे उसकी पथराई अधखुली आँखें उन्हें घूर रहीं हैं. पर जल्दी ही दोनों ने इन बातों को बिसार दिया. हँसते खेलते परिवार और बच्चों के साथ जिंदगी अच्छी कटने लगी.
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आज़ , इतने वर्षों बाद उसी जगह पर अपनी संतान के रक्त से रक्तीम हो रहीं लाल सड़क पर लगा जैसे एक कमजोर पड़ती दर्द भरी आवाज़ उनके कानों मे गूँजने लगी
– तुम्हारा वंश कभी नहीँ बढेगा……

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मॉकटेल- पिना कोलाडा (food and drink/ beverages)
मॉकटेल पिना कोलाडा प्यूर्टो रिको का राष्ट्रीय पेय । यह लोकप्रिय अौर स्वास्थवर्धक होता है। यह अनानास, नारियल का दूध , चीनी और आइस क्यूब्स से बनता है।
सामग्री-
2 कप कटा हुआ अनानास
4 से 6 आइस क्यूब्स
¾ कप नारियल पानी / नारियल का दुध 200 मिलीलीटर
2 -3 बड़े चम्मच चीनी या आवश्यकतानुसार
गार्निश के लिए कटा हुआ अनानास
बनाने की विधि-
कटे हुआ अनानास से ब्लेंडर या जूसर से जूस निकाल लें। जिस ग्लास में सर्व करना है । उसे कुछ समय पहले फ्रिज में ठंडा होने रख दें। ग्लास में अनानास जूस, नारियल पानी / दूध, आइस क्यूब्स अौर चीनी डालें। इसमें आप नारियल क्रीम भी डाल सकते हैं।
6 आइस क्यूब्स डालें। अनानास से गार्निश करें अौर तुरन्त सर्व करें ।
• ताजा जूस व नारियल दूध ना होने पर पैक का उपयोग कर सकते हैं।
• पिना कोलाडा मॉकटेल है अतः इसमें रम नहीं ड़ाला जाता है।

Picture Courtesy: Chandni Sahay
स्ट्रॉबेरी केक (strawberry cake with rose icing recipe)

केक
सामान-
मैदा – २ कप
चीनी – १ कप
अंङा – ४
मक्खन – ½ कप
वेनिला एसेंस – ४-५ बुंद
बेकिंग पाउङर- १/२ चम्मच
बनाने का तरीका-
१. मैदा अौर बेकिंग पाउङर २-३ बार चलनी से चालें।
२. अंङे की सफेदी अौर जर्दी अलग-अलग करें। सफेदी कङा झाग होने तक फेटें।
३. जर्दी को अलग से इतना फेटें । जिससे वह क्रिमी अौर हलका हो जाये। इसमें थोङा-थोङा कर चीनी ङालें अौर फेंटते जायें।
४. अब इसमें एक बार थोङा मैदा ङालें अौर फेटें फिर थोङा अंङे की सफेदी ङालें फेटें। यह क्रम मैदा अौर अंङे की सफेदी खत्म होने दोहराते जायें।
५. ४-५ बुंद वेनिला एसेंस ङाल कार फेटें।
६. केक टिन में मक्खन लगा कर आधा केक घोल ङालें। १८०/180 ङिग्री पर १०-१२ मि बेक करें। इसी तरह एक केक अौर बना लें। केक को ठंडा होने दें।
३. जर्दी को अलग से इतना फेटें । जिससे वह क्रिमी अौर हलका हो जाये। इसमें थोङा-थोङा कर चीनी ङालें अौर फेंटते जायें।
४. अब इसमें एक बार थोङा मैदा ङालें अौर फेटें फिर थोङा अंङे की सफेदी ङालें फेटें। यह क्रम मैदा अौर अंङे की सफेदी खत्म होने दोहराते जायें।
५. ४-५ बुंद वेनिला एसेंस ङाल कार फेटें।
६. केक टिन में मक्खन लगा कर आधा केक घोल ङालें। १८०/180 ङिग्री पर १०-१२ मि बेक करें। इसी तरह एक केक अौर बना लें। केक को ठंडा होने दें।
बीच का फिलिंग
सामान-
ताजी स्ट्रॉबेरी / ताजे फल – ५-१० पतला-पतला कटा
स्ट्रॉबेरी सिरप – ४-६ चम्मच
क्रीम – लगभग ½ कप
चीनी – २-४ चम्मच या स्वाद अनुसार
तरीका-
स्ट्रॉबेरी सिरप , चीनी अौर क्रीम मिलायें। दोनों केक पर आधा-आधा ङालें। एक केक के ऊपर कटी
ताजी स्ट्रॉबेरी / फल बिछायें। ऊपर दूसरा केक रखें।
आइसिंग-
सामान-
मक्खन सादा- १ कप ( बिना नमक का )
आइसिंग शुगर – २ कप
स्ट्रॉबेरी सिरप – ४ चम्मच
वेनिला एसेंस ४-५ बुंद
क्रीम – १ चम्मच या जरुरत के अनुसार।
सजावट के लिये स्प्रिंकल्स्
तरीका-
मक्खन मुलायम होने पर थोङा फेटें। अब इसमें एक बार थोङा आइसिंग शुगर ङालें अौर फेटें फिर १ चम्मच
स्ट्रॉबेरी सिरप ङालें अौर फेटें। यह क्रम आइसिंग शुगर अौर स्ट्रॉबेरी सिरप खत्म होने दोहराते जायें।अंत में क्रीम व वेनिला एसेंस ङालें अौर फेटें ।
केक के चारो चाकू या चम्मच से आइसिंग करें अौर स्प्रिंकल्स् लगायें ।
आइसिंग सीरिंज में क्लोज स्टार नोजल लगा लें। आइसिंग को आइसिंग सीरिंज में भरें ।
केक के ऊपर गुलाब बनाने का तरीका-
अब केक के ऊपर किनारे से गुलाब बनाने की शुरुआत करें। फूल एक बिंदू से शुरू करें अौर बाहर की अौर गोल-गोल बनाते जायें। इस तरह किनारे-किनारे गुलाब बनाते जायें। फिर दूसरे लाइन के गुलाब बनायें। अंत में बीच में गुलाब बनायें।
टिप –
१ हैंङ मिक्सर इस्तेमाल करने से केक घोल अच्छा मिक्स होता है।
२ थोङा-थोङा करके ङालने से बीच में हवा रह जाता है। जिससे केक ज्यादा फुलता है।
३ आइसिंग में जरुरत के अनुसार क्रीम ङालें। जिससे गुलाब सही आकार में रह सके।
१ हैंङ मिक्सर इस्तेमाल करने से केक घोल अच्छा मिक्स होता है।
२ थोङा-थोङा करके ङालने से बीच में हवा रह जाता है। जिससे केक ज्यादा फुलता है।
३ आइसिंग में जरुरत के अनुसार क्रीम ङालें। जिससे गुलाब सही आकार में रह सके।
cake recipe and image courtesy – Chandni Sahay.
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