चक्रव्यु तोङने वाले ,
अभिमन्यु की तरह सुनती वहाँ,
बाहर की बातें –
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
मुझे नहीं पता, मैं कौन हूं? बेटा या बेटी ?
पर बङे शुकून से मैं थी वहाँ,
सबसे सुरक्षित, महफूज।
तभी, एक दिन किसी ने प्रश्न किया –
बेटा है या बेटी ?
आवाज आई – बेटी !!
धीमा सा उत्तर आया – नहीं चाहिये, गिरा दो ।
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